क्षमा साधना के तीन निष्कर्ष



क्षमा साधना: मनुष्यों की मानसिक और भावनात्मक प्रभंधन के अनुसार आप इस साधना को जानते और समझते है। कुछ लोगो का मानना है की न माफ़ करना समझदारी है और ना ही भूल पाना।  दूसरी और के समूह में ये भावना है की भूल जाना बेहतर है परन्तु क्षमा करना नहीं। 
इसी तरह जनमत और भतेरे है।  


जैसा की हमने पहले कहा हर व्यक्ति की मानसिक और भावनात्मक बनावट उन्हें अपना मत रखने के काबिल बनाती है। इतना ही नहीं आपकी ज़िन्दगी के कुछ अनुभव इस मत को और मज़बूत बनाते है। 


मन में ये उलझन या सवाल की क्या सही और क्या गलत? खुद को ऊँची भावना में रखकर सोचा जाये तोह स्वयं की सच्चाई भी श्रेष्ठ है और हमारे सामने खड़े किसी और व्यक्ति की भी। परन्तु हर समय एक सामान्य व्यक्ति अपनी उच्च श्रेणी में रहने में सक्षम नहीं है। ऐसा मुमकिन है और आध्यात्मिकता का आधार भी यही है। इसी के साथ क्षमा का पूर्ण सारांश भी। क्षमा करना मतलब अपने भौतिक, भावनात्मक, और मानसिक शरीर का एकमत होकर एक व्यक्ति विशेष को पूर्ण रूप से माफ़ करना। आपको उस व्यक्ति विशेष का सामना करने की आव्यशकता नहीं है। साधना के द्वारा ये संभव है की आप दो लोगो के बीच के भेदभाव को बिना मिले और बात करें मिटा दें। कुछ आध्यात्मिक पथ मंत्रो के द्वारा इस लक्ष्य को पाने में समर्थ है। 


सवाल यह है की आप कैसे इस निष्कर्ष पर पोहोचे की आपकी की गयी क्षमा साधना सफल हो रही है है। क्युकी क्षमा करने और मिलने के बोहोत से पहलु है।  ऐसा हो सकता है की आप पहला ही पड़ाव पार करके मन में संतुष्टि कर लें की साधना सम्पूर्ण हो गयी है। अंत पड़ाव क्षमा साधना का कुछ तीन निष्कर्षो की तरफ इशारा करता है।  


पहला आप मन में उस व्यक्ति को कोसते नहीं है और ना ही उसे किसी तरह का श्राप देते है। ये कहना की भगवन सब देख रहे है और उनके साथ होगा तब उन्हें पता चलेगा भी एक तरह से श्राप देना ही है। अगर मन में उस व्यक्ति विशेष का ख्याल भी आये तोह आप उन्हें कोसने की बजाये आशीर्वाद देते है क्युकी आप हर पहलु से बात को समझ पाए हैं। आप समझ गए है की जिस बात से आपको ठेस पोहोची उसका मूल कारण क्या था और आप इस व्यक्ति को सद्बुद्धि का आशीर्वाद देते है ताकि दुबारा वो किसी और को अनजाने में ठेस ना पोहोचायें। 


दूसरा निष्कर्ष है की आप वो सारे पहलु हर दृष्टिकोण से समझ गए है और ये जान गए है की यह स्तिथि कैसे उत्पन्न हुई। सबक सीखना और सीखकर भविष्य में ऐसी स्तिथि और इसके जैसी अनेको स्तिथियों का सामना करने के काबिल होना भी क्षमा साधना का एक अति महत्वपूर्ण कारक है। इसका अन्य लाभ यह है की आप क्षमा मांगने में भी संकोच नहीं करते। "में सही हूँ" ऐसी सोच मन से निकल जाती है क्युकी अपनी विवेकता के बल पर आप चीज़ो को ज्यों का त्यों समझने में अब पूर्णता सक्षम है। 


तीसरा निष्कर्ष जो की केवल एक व्यक्ति विशेष की क्षमा साधना तक नहीं बल्कि साधक के चरित्र निर्माण से जुड़ा है। एक बार जब आप खुद को न्याय के कटखरे में दोषी पाते है और दोषी होने का निष्कर्ष भी आपकी विवेकता से ही आया हो तब आप नम्रता का एक नया पाठ पड़ते है। दुबारा ऐसा ना हो इसका आप हमेशा प्रयास करते है। दूसरों की गलतियों से सीखना हम बैकपेन से सुनते आ रहे है लेकिन अमल करना आप अब ज़रूर सीखते है। एक साधक या कोई भी आम व्यक्ति जब आत्मन पर विचार कर स्वयं की गलती का एहसास करे तोह ये असंभव है की वो अपनी नज़रो में खुद को गिरने दे। 

हम समझते है की निष्कर्ष और भी है क्यूकी क्षमा साधना आत्मा शुद्धिकरण है। इसमें कोई दोराये नहीं की हर व्यक्ति का शुद्धिकरण एक ही तरीके से नहीं हो सकता। जैसे जैसे आप अपने परिवार, सगे, सम्बन्धी, सहकर्मी, पडोसी, और अन्य सभी लोगो के प्रति प्रेम भाव रख क्षमा साधना करते है आप अपने अंदर विवेकता की क्षमता को  बढ़ता देखते है। आप स्वयं से और अपने आसपास की स्तिथियो से पूर्णतयः जागरूक रहते है और ज़िन्दगी की और एक नए दृष्टिकोण और आत्मबल से अग्रसर होते है। 


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